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राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता | Rajasthan Ke Parmukh Lok devta PDF Download

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राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता
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राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता

Table of Contents

लोक देवता गोगाजी महाराज-

  • ददरेवा चुरु में गोगा जी का जन्म स्थान है जिसे शीर्षमेड़ी कहते हैं।
  • गोगा जी के पिता का नाम – जेवरसिंह।
  • गोगा जी की माता का नाम – बाछल।
  • गोगा जी की पत्नी का नाम – कैमलदे कोलूमण्ड (फलौदी जोधपुर) की राजकुमारी।
  • गोगा जी के पुत्र का नाम – केसरिया जी।
  • गोगा जी की आराधना में श्रद्धालु सांकल नृत्य करते हैं।
  • प्रतीक चिन्ह – सर्फ।
  • गोगाजी की ध्वजा सबसे बड़ी ध्वजा मानी जाती है।
  • गोगाजी की सवारी – नीली घोड़ी।
  • गोगा जी के गुरु – गोरखनाथ।
  • गोगामेडी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया।
  • गोगामेडी का आकार मकबरेनुमा है।
  • गोगाजी हिंदू तथा मुसलमान दोनों धर्मों में समान रूप से लोकप्रिय थे।
  • किसान खेत में बुआई करने से पहले गोगाजी के नाम से राखड़ी हल तथा साली दोनों को बांधते हैं।
  • गोगाजी के थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते हैं, जहां पर गोगाजी की पत्थर पर सर्फ की आकृति में मूर्ति होती है।
  • गोगाजी की ओल्डी सांचौर (जालौर) में स्थित है।
  • यह पशु मेला राज्य का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला पशु मेला है।
  • इस मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय पशु मेला भी आयोजित होता है।
  • कायमखानी मुसलमान गोगाजी को अपना पूर्वज मानते हैं।
  • गोगाजी के एक हिंदू व एक मुस्लिम पुजारी होते हैं।
  • गोगामेडी दुर्ग का निर्माण फिरोज़ शाह तुगलक ने करवाया जो मकबरेनुमा आकृति में है, जिस पर बिस्मिल्लाह अंकित है, तथा इसका वर्तमान स्वरूप महाराजा गंगा सिंह ने करवाया।
  • गोगा जी का विशाल मेला भाद्रपद कृष्ण नवमी को गोगामेड़ी गांव नोहर तहसील हनुमानगढ़ में भरता है यह पशु मेला राज्य का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला पशु मेला है।
  • इनके गीतों में डेरु नामक वाद्य यंत्र बजाया जाता है।
  • गोगाजी को सापों के देवता, गौ रक्षक देवता, हिंदू इन्हें नागराज, मुस्लिम इन्हें जाहर पीर, गुग्गा आदि।
  • गोगा जी गोगा बाप्पा नाम से भी प्रसिद्ध है।
  • गोगाजी का अपने मौसेरे भाइयों अर्जन व सुर्जन के साथ जमीन जायदाद को लेकर झगड़ा हुआ था अर्जुन व सुर्जन ने मुस्लिम आक्रांताओं महमूद गजनी की मदद से गोगाजी पर आक्रमण कर दिया गोगाजी वीरतापूर्वक लड़कर शहीद हुए।
  • गोगाजी युद्ध करते समय उनका सिर ददरेवा (चूरू) में गिरा इसलिए इसे शीर्षमेडी कहते हैं तथा उनका धड़ नोहर (हनुमानगढ़) में गिरा इसलिए इसे धुरमेड़ी भी कहते हैं।
  • किलौरियों की ढाणी सांचौर जालौर में गोगाजी का मंदिर है जिससे गोगा जी की ओल्डी कहते हैं।
  • गोगाजी गौ रक्षक के लिए प्रोणोत्सर्ग करने वाले और सर्फद़ श से मुक्तिदाता माने जाने वाले राजस्थान के पंच पीरों में से एक पीर है

लोक देवता बाबा रामदेवजी-

  • रामदेव जी का जन्म ऊंडुकासमेर शिव तहसील बाड़मेर में हुआ था।
  • रामदेव जी के उपनाम- रामसा पीर, रुणेचा रा धणी, विष्णु का अवतार, पीरां रा पीर आदि।
  • रामदेव जी को कृष्ण का अवतार तथा उनके बड़े भाई वीरमदेव को बलराम का अवतार माना जाता है।
  • रामदेव जी तवंर वंशीय राजपूत थे।
  • गोगा जी का समाधि स्थल – रुणिचा जैसलमेर में रामसरोवर की पाल पर भाद्रपद शुक्ला एकादशी के दिन समाधि ली थी।
  • रामदेव जी के पिता का नाम – अजमाल जी तवर।
  • रामदेव जी के माता का नाम – मीणादे।
  • रामदेव जी की पत्नी का नाम – नेतलदे अमरकोट के राजा दल्लेसिंह सोढा की पुत्री थी।
  • रामदेव जी की सगी बहने – लाछा बाई, सुगना बाई।
  • रामदेव जी के प्रमुख शिष्य – हरजी भाटी, आई माता।
  • रामदेव जी ने कामड़ पंथ का प्रारंभ किया था।
  • रामदेव जी के मंदिर को देवरा कहते हैं।
  • रामदेव जी की ध्वजा को नेजा कहते है यह सफेद या पांच रंगो की होती है।
  • रामदेव जी की सवारी – लीला/नीला घोड़ा।
  • रामदेव जी के मेघवाल भक्तों को रिखिया कहते हैं।
  • लोक देवताओं में सबसे लंबा गीत रामदेवजी का है।
  • रामदेव जी के फड़ का वाचन मेघवाल जाति या कामड़ जाती के लोग रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बांचते हैं।
  • छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है।
  • हिंदू रामदेव जी को कृष्ण का अवतार मानते हैं।
  • रामदेव जी ने मेघवाल जाति की महिला डाली बाई को अपनी धर्म बहन बनाई थी।
  • रामदेव जी के तीर्थयात्री जातरू कहलाते हैं।
  • तेरहताली नृत्य कामड़ संप्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
  • मांगी बाई तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना है।
  • रामदेव जी के मेले का प्रमुख आकर्षण तेरहताली नृत्य होता है।
  • मसूरिया पहाड़ी जोधपुर, बिरांठिया अजमेर, सुरताखेड़ा चित्तौड़गढ़ में भी इनके मंदिर हैं।
  • रामदेव जी ने भैरव राक्षस का वध सातलमेर, पोकरण में किया था।
  • रामदेव जी के गुरु बालीनाथ जी थे।
  • तेरहताली नृत्य के समय कामड़ जाति का पुरुष तंदूरा वाद्य यंत्र बजाते हैं इस नृत्य को करते समय नृत्यांगना तेरह मंजीरे के साथ तेरहताल नृत्य उत्पन्न करते हुए तेरह स्थितियों में नृत्य करती है।
  • रामदेव जी की रचना चौबीस वाणियां कहलाती है।
  • रामदेव जी एकमात्र लोक देवता थे, जो कभी भी थे।
  • रामदेव जी के लिए नियत समाधि स्थल पर उनकी धर्म बहिन डाली बाई ने पहले समाधि ली थी।

रामदेवजी के मन्दिर – 

  • रूणेसा – पोकरण, जैसलमेर।
  • खुंडियास – अजमेर – इसे राजस्थान का छोटा/मिनी रामदेवरा कहते हैं।
  • बराठिया – पाली।
  • सुरता खेड़ा – चितौड़।
  • मसुरिया – जोधपुर।
  • छोटा रामदेवरा – गुजरात।

रामदेवजी की शब्दावली – 

  • परचा – रामदेवजी की चमत्कारी घटना।
  • नेजा – रामदेवजी की पांच रंग की ध्वजा।
  • जम्मा – रामदेवजी का रात्रि जागरण।
  • ब्यावले – रामदेवजी के भजन।
  • थान/देवरा – रामदेवजी के मन्दिर।
  • भांभी – रामदेवजी के भजन।
  • रिखिया – रामदेवजी के मेघवाल जाती के भक्त।
  • जातरू – रामदेवजी के भगत।
  • पगल्या – रामदेवजी का प्रतिक चिन्ह।

लोक देवता पाबूजी-

  • पाबूजी महाराज का जन्म 13वीं शताब्दी में जोधपुर के कोलूमड गांव में हुआ था।
  • पिता का नाम – धांधल जी राठौड़।
  • माता का नाम – कमला देवी।
  • पत्नी का नाम – फुलमदे/सुप्यारदे सोढ़ी।
  • फूलमदे अमरकोट के राजा सूरजमल सोढ़ा की पुत्री थी।
  • पाबूजी की घोड़ी – केसर कालमी।
  • पाबूजी को प्लेग रक्षक देवता, लक्ष्मण का अवतार, ऊंटो के देवता, गौ रक्षक देवता, हाड़ फाड़ के देवता, वचत पालक, शरणागत के रक्षक आदि नाम से जाना जाता हैं।
  • पाबूजी की घोड़ी का नाम – केसर कालमी।
  • पाबूजी की फड़ का वाचन रावण हत्था वाद्य यंत्र द्वारा किया जाता है।
  • पाबूजी की फड़ राज्य की सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है
  • पाबूजी की जीवनी पाबू प्रकाश आंशिया मोड़जी जी द्वारा रचित है।
  • पाबूजी का मेला क्षेत्र अमावस्या को कोलूमंड ग्राम में भरता है।
  • ऊंटों की पालक राइका जाति पाबूजी को अपना आराध्य देव मानते हैं।
  • पाबूजी का प्रतीक चिन्ह हाथ में भाला लिए हुए अश्वारोही हैं।
  • ऊंट के बीमार हो जाने पर ग्रामीण बाबूजी के नाम की तांती बांध कर मन्नत मांगते हैं।
  • पाबूजी की पगड़ी बाई और झुकी हुई होती है।
  • पाबूजी की बहन सोहन बाई थीं जिसकी शादी जायल के शासक जिन्द राव खींची के साथ हुई थी।
  • पाबूजी के मौत का बदला पाबूजी के बड़े भाई बूढ़ोजी के पुत्र रूपनाथजी/झरड़ा जी ने जींदराव खीचीं को मार कर लिया था।
  • पाबूजी का अन्य मंदिर आहड़ उदयपुर में हैं।
  • पाबू जी सुप्यारदे से विवाह के पैरों के बीच से उठकर अपने बहनोई जींदराव खींची से देवल चारणी की गायों की रक्षा करने चले गए और देचू नामक गांव में युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए इसलिए इन्हें गायों,ऊंटो के देवता के रूप में मानते हैं बाबू जी की पत्नी उनके वस्त्रों के साथ सती हुई तथा इस युद्ध में पाबूजी के भाई बूढ़ोजी भी शहीद हुए थे।
  • पाबूजी के लोकगीत पावड़े/पवाड़े कहलाते हैं जो माठ वाद्ययंत्र के साथ गाए जाते हैं।
  • मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय पाबूजी को कहा जाता है।

लोकदेवता हड़बूजी- 

  • हड़बूजी का जन्म 15वीं शदी मे भूण्डेल नागौर में स्थित है।
  • हड़बूजी मारवाड़ के पंच पीरों में से एक है।
  • हड़बूजी का वाहन – सियार।
  • हड़बूजी के पिता का नाम – मेहाजी मांगलिया।
  • हड़बूजी के गुरु – बालीनाथ।
  • हड़बूजी सांखला राजपूत परिवार से जुड़े हुए थे।
  • हड़बूजी के पुजारी सांखला राजपूत थे।
  • हड़बूजी का मंदिर बेंगटी ग्राम जोधपुर में स्थित है।
  • हड़बूजी को सिद्ध पुरुष, चमत्कारी पुरुष, शकुन शास्त्र के ज्ञाता, वचन सिद्ध, वीर योद्धा कहते हैं।
  • भाद्रपद शुक्ल पक्ष में इनका मेला भरता है।
  • हड़बूजी ने रामदेव जी के आठवें दिन समाधि ली थी।
  • हड़बूजी के मंदिर का निर्माण 1721 में जोधपुर के शासक अजीत सिंह ने करवाया था
  • इनके मंदिर में गाड़ी की पूजा होती है जिसमें हड़बूजी पंगू गायों के लिए चारा लाते हैं।
  • हड़बूजी रामदेव जी के मौसेरे भाई थे।
  • रामदेव जी के मौसेरे भाई व राव जोधा के समकालीन थे।
  • राव जोधा को इन्होंने मारवाड़ का राज्य पुन प्राप्त होने का आशीर्वाद तथा एक कटार दी थी। 
  • राव जोधा ने इन्हें राज्य प्राप्त होने पर बेंगटी गांव फलोदी जोधपुर दान में दिया जहां इनका मंदिर बनना है।

लोक देवता मेहाजी मांगलिया – 

  • इनका जन्म 14वी सदी में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को हुआ था। इस दिन इनका मेला भरता है।
  • मांगलिया मेहाजी पांच पीरों में से एक थे
  • पिता का नाम – गोपालराव सांखला।
  • मेहाजी मांगलिया का घोड़ा – किरड़ काबरा।
  • मेहाजी मांगलिया का पालन-पोषण ननिहाल में हुआ जो मांगलिया गौत्र के हैं।
  • मेहाजी मांगलिया का मन्दिर बापणी गांव जोधपुर में बना हैं।
  • मेहाजी मांगलिया की मृत्यु जैसलमेर के शासक राणंगदेव भाटी से युद्ध में गायों की रक्षा करते हुए हुई थी।
  • मेहाजी मांगलिया राजपूत जाति के आराध्य देव हैं।
  • मेहाजी के पूजारी के सन्तान नहीं होती हैं वह पुत्र गोद लेकर अपना वंश चलाता हैं।
  • मेहाजी मांगलिया का जन्म पंवार क्षत्रिय परिवार में हुआ था।
  • मेहाजी मांगलिया शंकुन शस्त्र के अच्छे जानकर थें।

लोक देवता तेजाजी – 

  • इनका जन्म 1074ईं में माघ शुक्ला चतुदर्शी को खड़नाल नागौर में हुआ था।
  • पिता का नाम – ताहड़जी/बक्साराम।
  • माता का नाम – राजकंवरी।
  • तेजाजी का विवाह पनेर नरेश रामचंद्र की पुत्री पैमल से हुआ था।
  • तेजाजी को जाटों का आराध्य देव मानते हैं।
  • तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहते हैं जो सांप काटे व्यक्ति का जहर मुंह से चूसकर निकलता है।
  • तेजाजी की घोड़ी का नाम – लीलण/सिणगारी।
  • भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा दशमी भी कहते हैं।
  • राजत व भंवरी तेजाजी की बहन थी।
  • हल जोतने समय किसान तेजाजी के गीत गाते हैं जिन्हें तेजाटेर कहते हैं।
  • तेजाजी ने जड़ी बूटियों के माध्यम से लोगों का इलाज किया था।
  • तेजाजी ने गोमूत्र व गोबर की राख से सांप के जहर का उपचार किया था।
  • तेजाजी के उपनाम – तेजाजी को गौ रक्षक, काला बाला के देवता, नागों के देवता, कृषि कार्यों के उपकारक देवता आदि नाम से जाना जाता है।
  • तेजाजी ने लाचा गूजरी या हीरा गूजरी की गायों को मेर या मीणा जाति से छुड़वाया था।
  • लाछा गुजरी की छतरी नागौर में स्थित है
  • तेजाजी के मंदिर को थान या चबूतरा कहते हैं।
  • तेजाजी के निधन का समाचार उनकी घोड़ी लीलण द्वारा पहुंचाया गया था।
  • तेजाजी के जन्म स्थान खरनाल पर ₹5 की डाक टिकट जारी की थी।
  • तलवार व जीभ पर सर्पदंश करते अश्वारोही तेजाजी का प्रतीक है।
  • इस मेले से राज्य सरकार को सर्वाधिक आय प्राप्त होती है।
  • लाछां गुजरी की गायों को मेर के मीणाओ से छुड़ाने के लिए संघर्ष किया व वीरगति को प्राप्त हुआ।
  • सुरसरा किशनगढ़ अजमेर यहां तेजाजी वीरगति को प्राप्त हुए थे।
  • तेजाजी को अजमेर में धोलियावीर के नाम से जाना जाता है।
  • तेजाजी का कार्यक्षेत्र हाडौती क्षैत्र में रहा है।
  • अन्य – प्रमुख स्थल- ब्यावर, सैंन्दरिया, भांवता, सुरसरा।

लोक देवता देवनारायण जी – 

  • देवनारायण जी का जन्म 1243ईं माघ शुक्ला षष्ठी को आसींद भीलवाड़ा में हुआ था।
  • देवनारायण जी का पालन पोषण देवास मध्यप्रदेश में हुआ था।
  • देवनारायण जी के पिता का नाम – सवाई भोज।
  • देवनारायण जी के माता का नाम – सेढू खटाणी।
  • देवनारायण जी गुर्जर जाति के आराध्य देव है।
  • गुर्जर जाति का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन है।
  • देवनारायण जी के घोड़े का नाम – लीलागर।
  • देवनारायण जी का मुख्य मेला भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को भरता है।
  • देवनारायण जी की फड़ राज्य की सबसे लंबी फड़ है।
  • देवनारायण जी की फड़ का वाचन जंतर नामक वाद्य यंत्र द्वारा किया जाता है।
  • देवनारायण जी को विष्णु का अवतार माना जाता है।
  • देवनारायण जी की शादी धार मध्य प्रदेश के शासक जय सिंह की पुत्री पीपलदे के साथ हुई थी।
  • देवनारायण जी के बचपन का नाम उदयसिंह था।
  • भिनाय के राणा दुर्जनसाल ने देवनारायण जी के पिता सवाई भोज की हत्या की थी।
  • देवनारायण जी के उपनाम – विष्णु का अवतार, आयुर्वेद के देवता, गौ रक्षक देवता आदि नाम से जाना जाता है।
  • देवनारायण जी के मंदिर में मूर्ति की जगह ईंट की नीम की पत्तियों से पूजा की जाती है।
  • देवनारायण जी राजस्थान व गुजरात के पूज्य देवता है।
  • देवनारायण जी की मृत्यु भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को देवमाली ब्यावर अजमेर मैं हुई थी।
  • देवनारायण जी की फड़ पर 2 सितंबर 1992 को ₹5 की डाक टिकट जारी की गई थी।

देवनारायण जी की आराधना स्थल – 

  • देव माली ब्यावर अजमेर – यहां देवनारायण जी का निर्माण हुआ था।
  • देव जी की डूंगरी चित्तौड़गढ़ – यहां देवनारायण जी का मंदिर है जिसका निर्माण राणा सांगा ने करवाया था।
  • देव धाम जोधपुरिया टोंक – यहां देवनारायण जी ने उपदेश दिए थे
  • आसींद भीलवाड़ा – यहां देवनारायण जी का जन्म हुआ था।

लोक देवता मल्लिनाथ जी – 

  • मल्लिनाथ जी का जन्म 1358 मैं तिलवाड़ा बाड़मेर में राठौड़ वंश में हुआ था।
  • मल्लिनाथ जी के पिता का नाम – तीड़ाजी/सलखाजी।
  • मल्लिनाथ जी के माता का नाम – जीणादे।
  • मल्लिनाथ जी के गुरु – उगमसी भाटी।
  • मल्लिनाथ जी ने 1378 में फिरोज तुगलक दिल्ली व  निजामुद्दीन मालवा को पराजित किया था।
  • मल्लिनाथ जी के उपनाम – सिद्ध पुरुष, सूरवीर, चमत्कारी पुरुष आदि।
  • मल्लिनाथ जी ने 1399 कुण्डा पंथ की स्थापना की थी।
  • इस मेले के साथ-साथ पशु मेला भी आयोजित होता है।
  • बाड़मेर का गुडामालानी का नामकरण मल्लिनाथ जी के नाम पर हुआ है।
  • यह मेला मल्लिनाथ जी के राज्याभिषेक के अवसर से वर्तमान तक आयोजित होता है।
  • यह मेला तिलवाड़ा बाड़मेर में लूनी नदी के किनारे क्षेत्र कृष्णा एकादशी से क्षेत्र शुक्ला एकादशी तक पशु मेला भरता है।
  • मल्लिनाथ की पत्नी रूपादे का मंदिर मालाजाल गांव बाड़मेर में बना हुआ है।
  • इस मेले में थारपारकर व कांकरेज गायों का सर्वाधिक क्रय-विक्रय होता है।
  • बाड़मेर में मालानी क्षेत्र का नाम इन्हीं के नाम से पड़ा जहां के घोड़े प्रसिद्ध हैं।

लोक देवता तल्लिनाथ जी – 

  • तल्लिनाथ जी का जन्म शेरगढ़ जोधपुर में राठौर परिवार में हुआ था।
  • उनके पिता का नाम – वीरमदेव। 
  • उनके गुरु – जालंधर।
  • उनके बचपन का नाम – गांगदेव राठौड़ था यह राव चूड़ा के भाई थे।
  • तल्लिनाथ जी जालौर के प्रमुख लोक देवता थे।
  • इनका मंदिर पंचमुखी की पहाड़ी पांचोटा जालौर में स्थित है।
  • जहरीला कीड़ा काटने पर इनके मंदिर में इलाज होता है।
  •  तल्लिनाथ जी मारवाड़ के राजा वीरमदेव के पुत्र तथा मंडोर के राजा रावचुंडा राठौर के भाई थे।
  • तल्लिनाथ जी प्रकृति प्रेमी थे। इसलिए इन्हें प्रकृति प्रेमी लोक देवता भी कहते हैं।
  • तल्लिनाथ जी को जालौर क्षेत्र के लोग ओरण मानते हैं। यहां पर कोई पेड़ पौधा नहीं काटता है। जालौर जिले के पांचोटा गांव के निकट पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्लिनाथ जी की मूर्ति स्थापित है। यहां तल्लिनाथ जी का पूजा स्थल है।

लोक देवता मामा देव – 

  • मामा देव के उपनाम – बरसात का देवता, गांव के रक्षक।
  • मामादेव पश्चिमी राजस्थान के लोकप्रिय देवता है।
  • मामा देव को खुश करने के लिए भैंस की बलि दी जाती हैं।
  • इनके मूर्ति के स्थान पर काष्ठ का तोरण होता है जिससे गांव के बाहर स्थापित किया जाता है।
  • इनका मंदिर – स्यालोदड़ा सीकर।

लोक देवता डूंगरजी – जवाहर जी

  •  डूंगर जी जवारजी का जन्म बाठौठ-पाटोदा सीकर मैं हुआ था।
  • डूंगर जी जवार जी दोनों चाचा भतीजा शेखावाटी क्षेत्र में धनी लोगों धन लूटकर उनका धन गरीबों एंव जरूरतमंदों में बांट दिया करते थे।
  • शेखावाटी के लोग डूंगर जी व जवार जी की पूजा लोक देवता के रूप में करते हैं।
  • शेखावाटी के लोग डूंगर जी व जवार जी को बलजी- भूरजी के उपनाम से भी जाना जाता है।

लोक देवता इलोजी – 

  • इलोजी को मारवाड़ में छेड़छाड़ के देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • इलोजी होलिका के होने वाले पति थे।
  • अच्छे वर-वधू के लिए मारवाड़ में इनकी पूजा की जाती है।
  • इनकें मंदिर में आदम कद नग्न मूर्ति होती है।
  • इलोजी ने होलिका की राख को अपने शरीर पर लगाया तथा आजीवन कुंवारे रहने की शपथ ली थी।

लोक देवता रूपनाथ जी/झरड़ा जी – 

  • इनका जन्म कोलूमंड जोधपुर में हुआ था।
  • रूपनाथ जी पाबू जी के भतीजे तथा बूडोजी राठौड़ के पुत्र थे।
  • रूपनाथ जी ने पाबूजी की मृत्यु का बदला जिंदराव खींची को मारकर लिया था।
  • हिमाचल प्रदेश में बालकनाथ के रूप में इनकी पूजा होती है।
  • सिंभूदड़ा नोखा बीकानेर, कोलूमंड जोधपुर में इनके मंदिर है।

लोक देवता देव बाबा –

  • देव बाबा का जन्म नगला जहाज भरतपुर में हुआ था।
  • देव बाबा को ग्वालों के देवता, पशु चिकित्सक कहते हैं।
  • इनका मेला भाद्रपद शुक्ल पंचमी व चैत्र शुक्ल पंचमी को भरता है।
  • इनका वाहन – पाडा/भैंसा।
  • इन्होंने मृत्यु के बाद भी अपनी बहन का भात भरा था।
  • ऐसा माना जाता है कि गवालों को भोजन कराने से देव बाबा खुश होते हैं

लोक देवता कल्ला जी – 

  • इनका जन्म 1544ईं में सामियाना गांव मेड़ता नागौर में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम – आससिंह।
  • इनके माता का नाम – श्वेतकवंर।
  • आससिंह रावदूदा के पुत्र थे।
  • कैलाश जी के गुरु – भैरवनाथ।
  • कल्ला जी को चार भुजा वाले देवता, योगी, शेषनाग का अवतार, दो सिर वाले देवता, बाल-ब्रह्मचारी, कल्याण, कमधण, आदि कहते हैं।
  • कल्लाजी की बुआ – मीराबाई।
  • कल्ला जी के चाचा – जयमल।
  • 1567-68 मैं चित्तौड़गढ़ के तीसरे साके मेंअकबर के विरूद्ध युद्ध करते हुए चित्तौड़गढ़ दुर्ग के तीसरे दरवाजे भैरव पोल में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
  • कल्ला जी की छतरी चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
  • भैरवपोल चित्तौड़गढ़ व साबलिया डूंगरपुर मैं इनके मंदिर स्थित है जहां कुत्ता, बिच्छू, भूत-प्रेत का इलाज होता है।
  • इनका मेला आश्विन शुक्ल नवमी को लगता है।
  • यह गुजरात, मध्य प्रदेश व राजस्थान के मुख्य देवता है।
  • कल्ला जी की मुख्य पीठ रनेला चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
  • कल्ला जी की कुलदेवी नागणेची माता है।

लोक देवता हरिराम जी – 

  • इनका जन्म झोरड़ा नागौर में हुआ था।
  • इनके पिता – रामनारायण।
  • इनकी माता – चन्दणी।
  • इनके मंदिर में मूर्ति की जगह सांप की बांबी व चरण चिन्ह पूजे जाते हैं।
  • इनका मेला चैत्र शुक्ल चतुर्थी व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को लगता है।

लोक देवता केसरिया कंवरजी – 

  • केसरिया कंवर जी का जन्म ददरेवा चूरू में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम – गोगाजी, जो लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं।
  • केसरिया कंवर जी के थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराते हैं।
  • केसरिया कंवर जी का थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है।
  • केसरिया कंवर जी के भगत सर्प दंश के रोगी का जहर मुंह से चूसकर बाहर निकाल देता है।

लोक देवता भूरिया बाबा – 

  • भूरिया बाबा गौतमेश्वर के नाम से जाने जाते हैं।
  • मीणा जाति के लोग भूरिया बाबा की कभी भी झूठी कसम नहीं खाते हैं।
  • भूरिया बाबा मीणा जाति के लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।

लोक देवता वीर बिग्गाजी – 

  • वीर बिग्गा जी का जन्म रिडी गांव जंगलप्रदेश बीकानेर के जाट परिवार में हुआ था।
  • उनके पिता का नाम – राम मोहन।
  • उनकी माता का नाम – सुल्तानी देवी।
  • वीर बिग्गाजी जाखड़ जाति के कुलदेवता/इष्टदेव माने जाते हैं।
  • वीर बिग्गा जी ने अपना संपूर्ण जीवन गौ-सेवा में व्यतीत किया और मुस्लिम लुटेरों से गाय छुडाते समय वीरगति को प्राप्त हुए थे।
  • बीकानेर की श्री डूंगरगढ़ तहसील का बीघा गांव शूरवीर लोक देवता बिग्गा के नाम पर प्रसिद्ध हुआ इस गांव में स्थित मंदिर में हर वर्ष 14अक्टूबर को वीर बिग्गाजी का मेला भरता है।

लोक देवता वीर फताजी – 

  • वीर फताजी का जन्म साथू गांव जालौर के गज्जारणी परिवार में हुआ था।
  • वीर फता जी ने शस्त्र विद्या का ज्ञान प्राप्त किया था।
  • फिर फता जी ने अपने गांव की मान-मर्यादा की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे।
  • वीर फता जी का मुख्य पूजा स्थल साधु गांव जालौर में स्थित है।
  • वीर फता जी का मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को भरता है।

लोक देवता बाबा झुंझार जी –

  • झुंझार जी का जन्म सीकर जिले के नीमकाथाना क्षेत्र में इमलोहा गांव में राजपूत परिवार में हुआ था।
  • झुंझार जी का थान खेजड़ी के पेड़ के नीचे होता है।
  • झुंझार जी के इस श्रद्धा स्थल पर नवविवाहित गठ जोड़े की जात देने आते हैं, वही छोटे बच्चों का झंडूला उतारने यहां आते हैं।
  • स्यालोदड़ा गांव सीकर में झुंझार जी का प्रसिद्ध पांच स्तंभ का मंदिर स्थित है। जहां पर प्रति वर्ष रामनवमी को मेला लगता है।

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