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Dungarpur District GK In Hindi ➥ डूंगरपुर जिले की सम्पूर्ण जानकारी

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Dungarpur District GK In Hindi ➥ डूंगरपुर जिले की सम्पूर्ण जानकारी –डूंगरपुर जिला दर्शन : इस पोस्ट में डूंगरपुर जिला दर्शन PDF सीरीज में डूंगरपुर का सामान्य परिचय, डूंगरपुर का क्षेत्रफल, डूंगरपुर के उपनाम, डूंगरपुर का अक्षांशीय एवं देशांतरीय विस्तार, डूंगरपुर के प्रमुख मंदिर, डूंगरपुर के पर्यटन स्थल, डूंगरपुर के प्रमुख मेले और त्यौहार, डूंगरपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल, डूंगरपुर के सामान्य ज्ञान, डूंगरपुर जिले की खनिज संपदा, डूंगरपुर जिले के अभयारण्य इत्यादि के प्रश्नोत्तर को शामिल किया गया हैं।

Dungarpur District GK In Hindi ➥ डूंगरपुर जिले की सम्पूर्ण जानकारी
Dungarpur District GK In Hindi ➥ डूंगरपुर जिले की सम्पूर्ण जानकारी

Dungarpur District GK in Hindi

  • 25 मार्च, 1948 को डूंगरपुर का राजस्थान संघ में विलय कर दिया गया। उस समय डूंगरपुर के शासक महारावल लक्ष्मणसिंह थे।
  • उदयबाव — यह बावड़ी महारावल उदयसिंह द्वितीय ने बनवाई।
  • उर्स (दाउदी बोहरा सम्प्रदाय) — गलियाकोट
  • एक थस्बिया महल-डूंगरपुर में है जिसका निर्माण महारावल शिवसिंह ने 1730 से 1785 ई. के बीच अपनी राजमाता ज्ञान कुँवरी की स्मृति में करवाया।
  • एडवर्ड समुद्र — सम्राट एडवर्ड सप्तम की स्मृति में महारावल विजय सिंह ने यह झील बनानी प्रारम्भ की जिसे उनके पुत्र महारावल लक्ष्मण सिंह ने पूर्ण किया।
  • कालीबाई जन्म — रास्तापाल (डूंगरपुर) अपने गुरु नानाभाई खांट को बचाने हेतु 12 वर्ष की आयु में जून, 1947 में शहीद हो गई। इनका दाह संस्कार सुरपुर ग्राम (गैब सागर बांध के पास) में किया।
  • केला बावड़ी — महारावल जसवंत सिंह की राठौड़ रानी गुमान कुँवरी ने यह बावड़ी बनवाई।
  • गलियाकोट सोपस्टोन के कलात्मक खिलौनों के लिए जाना जाता है, जिसे रमकड़ा उद्योग कहते हैं।
  • गवरी बाई — कृष्ण भक्ति के कारण इन्हें “वागड़ की मीरां” कहा जाता है। इनका जन्म डूंगरपुर के ब्राह्मण परिवार में हुआ इन्होंने कीर्तनमाला नामक ग्रन्थ की रचना की। इसने सन् 1818 में जल समाधि ली।

  • गैब सागर झील — महारावल गोपीनाथ ने 15वीं शताब्दी में डूंगरपुर में गैब सागर झील बनवाई।
  • जूना महल — डूंगरपुर में धनमाता पहाड़ी पर निर्मित।
  • डूंगरपुर का क्षेत्रफल – 3,770 वर्ग किलोमीटर है।
  • डूंगरपुर के खरदड़ा गाँव में क्षेत्रपाल का प्रसिद्ध मंदिर है।
  • डूंगरपुर को पहाड़ों की नगरी उपनाम से भी जाना जाता है।
  • डूंगरपुर को पहाड़ों की नगरी कहा जाता है। राजस्थान निर्माण के समय यह राजस्थान का सबसे-छोटा जिला था।
  • डूंगरपुर जिला देश का पहला पूर्ण साक्षर आदिवासी जिला बना था। राजस्थान में सर्वाधिक लिंगानुपात भी इसी जिले का है।
  • डूंगरपुर जिला पूर्ण साक्षर घोषित होने वाला राजस्थान का पहला आदिवासी जिला है।
  • डूंगरपुर जिले की प्रमुख झीलें व बाँध : पुंजेला झील, गैब सागर, सोम-कमला-अम्बा बाँध, कुमल सगार बाँध, डिमीया डेम (मोरेन नदी पर), पटेला झील, लाड़ीसर झील, सवेला झील, चूंडावाडा की झील।
  • डूंगरपुर में कुल वन क्षेत्रफल – 646.82 वर्ग किलोमीटर है।

  • डूंगरपुर में परेवा’ नाम का सफेद, श्याम व भूरे रंग का पत्थर निकलता है जिससे बर्तन, खिलौने व मुर्तिया बनते है।
  • डूंगरपुर राज्य का पुराना नाम ‘वागड़’ है जो गुजराती भाषा के ‘वगड़ा’ शब्द से मिलता हुआ है। इसका अर्थ जंगल होता है।
  • डूंगरपुर राज्य की मुख्य भाषा वागड़ी’ है जो गुजराती का रूपान्तर है।
  • डूंगरसिह ने 1358 ई. में डुंगरपर नगर की स्थापना की और वहाँ राजधानी बनायी, तभी से वागड को डूंगरपुर राज्य भी कहने लगे। महारावल उदयसिंह की 1527 ई. में मृत्यु के बाद इस राज्य के दो भाग हुए जिसमें पश्चिम भाग डूंगरपुर कहलाया और पूर्वी भाग बाँसवाड़ा राज्य कहलाया। इन दोनों राज्य की सीमा माही नदी ने बनाई। 1527 ई. में महारावल पथ्वीराज स्वतंत्र राज्य के रूप में नींव डाली।
  • डेसा गांव की बावड़ी — यह बावड़ी डूंगरसिंह के पुत्र रावल कर्मसिंह की रानी माणक दे ने 23 अक्टूबर, 1396 को बनवाई।
  • डॉ. नगेन्द्र सिंह — अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में दो बार न्यायाधीश रहे, नगेन्द्र सिंह ने ‘द थ्योरी ऑफ फोर्स हिन्दू पॉलिटी’ पुस्तक की रचना की। भारत सरकार ने 1973 में इन्हें “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया।

  • देव सोमनाथ — यह प्राचीन शिव मंदिर सोम नदी के किनारे देवगाँव में स्थित है। संभवत: 12वीं सदी में निर्मित देवसोमनाथ शिवालय वागड़ का सांस्कृतिक वैभव तो है ही वास्तुशिल्प की दृष्टि से भी अद्वितीय है। इसमें बिना सीमेन्ट व चने के विशिष्ट शिल्पविधि से पत्थरों को जोडकर निर्मित किया गया है।
  • नगरीय क्षेत्रफल 31.27 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 3,738.73 वर्ग किलोमीटर है।
  • नीला पानी का मेला — हाथोड़
  • नौलखा बाग — डूंगरपुर में यह बाग महारावल पुंजराज ने बनवाया।
  • नौलखा बावड़ी — महारावल आसकरण की चौहान वंश की रानी प्रेमल देवी ने डूंगरपुर में भव्य नौलखा बावड़ी बनवाई।
  • पितृ पूजा महोत्सवः दीपावली के 14 दिन पश्चात् आने वाली कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को वनवासी पूर्वजों की स्मृति में पितृ पूजा महोत्सव मनाते है। यह महोत्सव दीपावली के दिन मृतात्माओं के दीपदान की रस्म दीवड़ा के साथ प्रारंभ हो जाता है।

  • पुंजेला झील — यह झील महारावल पुंजराज ने बनवाई । इसका जीर्णोद्धार महारावल विजयसिंह ने किया।
  • प्राचीन ‘वागड़’ प्रदेश में वर्तमान डूंगरपुर और बाँसवाड़ा राज्यों तथा उदयपुर का कुछ दक्षिणी भाग अर्थात् छप्पन नामक प्रदेश का समावेश होता है।
  • बांसवाड़ा व डूँगरपुर के मध्य के भू-भाग को मेवल नाम से जाना जाता है।
  • बादल महल — गैबसागर झील के किनारे निर्मित महल।
  • बीजवा माता का मेला — आसपुर
  • बेणेश्वर — बेणेश्वर धाम
  • बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) — माही, सोम और जाखम नदियों के संगम पर नेवटापारा गाँव के पास स्थित बेणेश्वर धाम वनवासियों का महातीर्थ है। यहाँ पहाडी पर प्राचीन शिवालय है। इसे महारावल आसकरण ने बनवाया था। बेणेश्वर धाम का सर्वोपरि महत्त्व मतात्माओं के मक्तिस्थल के रूप में भी है। मावजी महाराज का संबंध इसी धाम से है। बेणेश्वर मेले का शभारम्भ माघ शुक्ला ग्यारस क शुभ दिन बेणेश्वर पीठाधीश्वर (वर्तमान में गोस्वामी अच्यतानन्द महाराज) द्वारा बेणेश्वर धाम के प्रधान देवालय हरि मंदिर (राधा-कृष्ण मंदिर) पर सात रंगों वाला ध्वज चढ़ा कर किया जाता है, जो पूर्णिमा तक चलता है।

  • बोरेश्वर महादेव — डूंगरपुर के सोलज गाँव के निकट सोम नदी के किनारे बोरेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है।
  • बोरेश्वर मेला — बोरेश्वर
  • भुवनेश्वर — यह शिव मंदिर, डूंगरपुर से 9 किमी दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग है।
  • भोगीलाल पाण्डया — वागड़ के गाँधी के नाम से प्रसिद्ध इनका जन्म 13 नवम्बर, 1904 को हुआ। इन्होंने ‘वागड़ सेवा मंदिर’ व डूंगरपुर प्रजामण्डल (1944 में) की स्थापना की।
  • महारावल लक्ष्मण सिंह — राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके लक्ष्मण सिंह एक शिकारी के रूप में इनका नाम “गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है।
  • महालक्ष्मी का मंदिर — महारावल विजयसिंह ने अपनी माता हिम्मत कुँवरी की स्मृति में बेणेश्वर में यह मंदिर बनवाया।
  • महुआ का पेड़ – आदिवासियों के लिए वरदान है, इस पेड़ से महुड़ी शराब बनाते हैं। उड़न गिलहरी इसी पेड़ में निवास करती है।
  • माही, सोम, भादर, मोरेन यहाँ की मुख्य नदियाँ है।
  • मूरला गणेश — डूंगरपुर
  • रथोत्सव — डूंगरपुर पीठ
  • राजस्थान में डामोर जनजाति सर्वाधिक सीमलवाड़ा (डूंगरपुर) में निवास करती है। यह जनजाति एक मात्र ऐसी जनजाति है जो वनों पर आश्रित नहीं है।

  • राजस्थान में डूंगरपुर, बाँसवाड़ा व उदयपुर की झूमिंग खेती को ‘वालरा’ कहते हैं।
  • राज्य में सर्वाधिक मेले डूंगरपुर में लगते हैं।
  • राड-रमण: होलिका दहन के दूसरे दिन डूंगरपुर में राड-रमण का आयोजन किया जाता था।
  • राध बिहारी का मंदिर — महारावल उदयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित मंदिर।
  • वनों को बढ़ावा देने के लिए 1986 में राजीव गाँधी ने रूख भायला कार्यक्रम की शुरूआत डूंगरपुर से की। रूख भायला का अर्थ-वृक्ष मित्र होता है।
  • वसुंदरा (वसुंधरा) देवी माँ मंदिर — यह प्राचीन मंदिर दूंगरपुर के वसूंदरा गाँव में स्थित है।
  • वागड़ प्रदेश की पुरानी राजधानी बड़ौदा थी।
  • विजय राजेश्वर मंदिर — डूंगरपुर के गैबसागर पर पारेवा प्रस्तर से निर्मित इस चतर्भजाकार भव्य मंदिर का निर्माण महारावल विजयसिंह ने प्रारम्भ करवाया था जिसे उनके पुत्र महारावल लक्ष्मणसिंह ने पूर्ण करवाया।
  • शिवज्ञानेश्वर ( एक थम्बिया ) — डूगरपुर के सुरम्य गेबसागर तट पर उदयविलास राजप्रासाद में स्थित यह शिवालय वागड़ की उत्कृष्ट वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण है। इसका निर्माण महारावल शिवसिंह (1730-85 ई.) द्वारा अपनी माता राजमहिषी ज्ञानकुंवर की स्मति में शिवज्ञानेश्वर शिवालय के रूप में करवाया गया था।

  • शिवज्ञानेश्वर शिवालय — महारावल शिवसिंह द्वारा गैबसागर झील के तट पर अपनी माता की स्मृति में शिवज्ञानेश्वर शिवालय शिवालय बनवाया। उन्होंने दक्षिण कालिका का मंदिर भी बनवाया।
  • श्रीनाथ जी (गोवर्धन नाथ) — इस मंदिर का निर्माण महारावल पुंजराज ने करवाया था। इसकी प्रतिष्ठा 25 अप्रैल, 1623 को की गई। इसमें श्री गोवर्धन नाथ जी और श्री राधिका जी की आदमकद प्रतिमाएँ है ।
  • सफेद पत्थरों से निर्मित देव सोमनाथ मंदिर डूंगरपुर में है। इस मंदिर के निर्माण में कहीं भी चूने का प्रयोग नहीं हुआ है केवल पत्थरों से चुनकर बनाया गया है।
  • सैयद फखरुद्दीन की मस्जिद — परमार राजाओं से संबंधित एवं माही नदी के तट पर स्थित यह स्थान वर्तमान में दाउदी बोहरा सम्प्रदाय के सैयद फखरुद्दीन की मस्जिद के लिए प्रसिद्ध है। यह दाउदी बोहरा सम्प्रदाय का प्रधान तीर्थ स्थल है। यहाँ हर वर्ष उर्स भरता है। गलियाकोट की गोबर के कंडों से खेली जाने वाली होली प्रसिद्ध है।
  • सोम-कमला-अम्बा सिंचाई परियोजना डूंगरपुर जिले की प्रमुख सिंचाई परियोजना है।
  • हड़मतिया का मेला — पालपाण्डव

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