सौरमण्डल (Solar System)
सौरमण्डल (Solar System): सूर्य और उसके चारों ओर चक्कर लगाने वाले 8 ग्रह, 205 उपग्रह, धूमकेतु, उल्काएं और क्षुद्रग्रह, समूहरूप से सौरमण्डल कहलाते हैं।
सूर्य (Sun)
- सूर्य, सौरमण्डल का केंद्र और ऊर्जा का स्रोत है। यह एक मध्यम आयु का तारा है। सूर्य की आयु 4.5 अरब वर्ष है।
- सूर्य का व्यास 13.84 लाख किलोमीटर है। सूर्य के केंद्र का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेंटीग्रेड है।
- सूर्य की ऊर्जा का स्रोत उसके केंद्र में हाइड्रोजन परमाणुओं का नाभिकीय संलयन द्वारा हीलियम परमाणुओं में बदलना है।
- सौर परिवार के द्रव्यमान का 99.8% सूर्य में होता है। सूर्य नाभिकीय संलयन से हमें प्रति सेकंड 40 लाख टन ऊर्जा सौरताप के रूप में प्रदान की जा सकती है।
- सूर्य की पृथ्वी से न्यूनतम दूरी 14.70 करोड़ किलोमीटर है, अधिकतम दूरी 15.21 करोड़ किलोमीटर है और माध्य दूरी 14.98 करोड़ किलोमीटर है।
- सूर्य का आयतन पृथ्वी से 13 लाख गुना और द्रव्यमान पृथ्वी से 3,32,000 गुना है।
- सूर्य का रासायनिक संरचना: हाइड्रोजन 71%, हीलियम: 26.5%, अन्य तत्वः 2.5%
- सूर्य के आंतरिक भाग का तापमान 1.5×107 डिग्री सेंटीग्रेड है। सूर्य की बाहरी सतह का तापमान 6000° सेंटीग्रेड है। सौर कलक या सौर धब्बों का तापमान 1500 डिग्री सेंटीग्रेड है।
- सूर्य के केंद्र के अत्यधिक तापमान के कारण सभी पदार्थ गैस और प्लाज्मा के रूप में मिलते हैं।
- सौर परिवार का केंद्र सूर्य है।
- पृथ्वी को सूर्य से मिलने वाले प्रकाश का 1/22 अरब भाग प्राप्त होता है। सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिनट 16.6 सेकंड का समय लगता है।
- सूर्य अंत में श्वेत वामन नारे में परिवर्तित हो जाएगा।
आंतरिक संरचना
- केन्द्र (कोर): यह सूर्य का केन्द्रीय भाग है। सूर्य के केन्द्र का व्यास 3.48 लाख किमी है। इस भाग का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेंटीग्रेड होता है।
- विकिरण मेखला: यह सूर्य के केन्द्र को चारों ओर से ढंके हुए है।
- संवहनीय मेखला: यह विकिरण मेखला को घेरे हुए है। इसका निर्माण परत कोशिकाओं से हुआ है।
बाहरी संरचना
- प्रकाश मंडल: संवहनीय मेखला की सतह (सूर्य का धरातल) को प्रकाश मंडल कहते हैं। इस मंडल का तापमान 6000 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। इस मंडल में ही सौर कल्क पाए जाते हैं।
- वर्ण मंडल: वर्णमंडल ही सूर्य का वायुमंडल है। यह फोटो स्फेयर के ऊपर एक आवरण के रूप में 2000-3000 किमी तक फैला हुआ है। इस मंडल में प्रकाश मंडल की अपेक्षा गैसों का घनत्व कम है तथा तापमान अधिक है। इस मंडल में कभी कभी तीव्र गहन प्रकाश की उत्पत्ति होती है, जिसे सौर ज्वाला कहा जाता है।
- कोरोना: यह सूर्य के वायुमण्डल का सबसे बाहरी आवरण है। यह वर्ण मंडल के ऊपर पाया जाता है। सौर पवन इसी मंडल में पायी जाती है। कोरोना से रेडियो तरंगे निकलती हैं। यह केवल सूर्यग्रहण के समय दिखता है।
सूर्य से संबंधित प्रमुख घटनाएं
- सौर वर्ष (कॉस्मिक वर्ष): सूर्य अपनी मंदाकिनी की परिक्रमा 250 मिलियन (25 करोड़) वर्ष में करता है। यह अवधि सौर वर्ष कहलाती है।
- सौर परिभ्रमण (सोलर रोटेशन): सूर्य का अपने ध्रुवीय अक्ष पर पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमना सौर परिभ्रमण कहलाता है। सूर्य अपने अक्ष पर 7.25 डिग्री का कोण बनाता है। सूर्य का भूमध्य रेखीय भाग 24.47 दिन में एक चक्कर पूरा करता है। सूर्य की घूमन गति उसके निम्न अक्षांशों पर सबसे अधिक होती है।
- ऑरोरा: कभी-कभी सूर्य के प्रकाशमंडल से परमाणुओं का तूफान बहुत अधिक वेग से निकलता है, जो सूर्य की आकर्षण शक्ति को पार करके अंतरिक्ष में चला जाता है। इसे सौर ज्वाला कहा जाता है। जब यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो हवा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश उत्पन्न होता है। इस प्रकाश को उत्तरी ध्रुव पर ऑरोरा बोरियालिस और दक्षिणी ध्रुव पर ऑरोरा ऑस्ट्रलिस कहा जाता है।
ग्रह (प्लैनेट)
- ग्रह (प्लैनेट): तारों की परिक्रमा करने वाले प्रकाशरहित आकाशीय गोलीय वस्तुओं को ग्रह कहा जाता है। ये सूर्य से बाहर निकले हुए पिण्ड होते हैं और सूर्य की परिक्रमा करते हैं। ग्रहों का अपना प्रकाश नहीं होता, वे सूर्य के प्रकाश से ही चमकते हैं। ग्रहों को प्राप्त होने वाली ऊष्मा का स्रोत सूर्य ही है। अगस्त 2006 में प्राग (चेक गणराज्य) में आयोजित अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) के अधिवेशन में यह निर्णय किया गया कि प्लूटो सौरमंडल का ग्रह नहीं है। वर्तमान में सौरमंडल में केवल 8 ग्रह हैं।
- ग्रह की नई परिभाषा: केवल वे आकाशीय पिण्ड ही ग्रह माने जाएंगे जो अपनी निश्चित कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं, जिनका आकार लगभग गोल है और वे अन्य ग्रहों की कक्षा का अतिक्रमण नहीं करते हैं।
- प्लूटो की कक्षा, वरुण ग्रह की कक्षा को अतिक्रमण करती है, इसलिए प्लूटो को ग्रहों की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, और अब प्लूटो को बौना ग्रह माना जाता है।
- वर्तमान में सौरमंडल में 8 ग्रह हैं – बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण (नेप्च्यून)।
ग्रहों की गति संबंधी निगम
1571 ई. में केपलर ने ग्रहों की गति से संबंधित तीन नियमों को प्रस्तुत किया –
- प्रथम नियम: सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार कक्षाओं में परिक्रमा करते हैं, जिनका केंद्र सूर्य है, और इसे कक्षा का नियम कहा जाता है।
- द्वितीय नियम: ग्रहों की गति के द्वितीय नियम के अनुसार, ग्रह की क्षेत्रफलीय चाल नियत (स्थिर) रहती है, जिससे ग्रह की कक्षीय तल पर ग्रह और सूर्य को मिलने वाली रेखा समयांतराल में समान क्षेत्रफल तय होती है। इसका अर्थ है कि जब ग्रह सूर्य से दूर है, तो उसकी चाल न्यूनतम होती है, और जब ग्रह सूर्य के समीप है, तो ग्रह की चाल अधिकतम होती है।
- तृतीय नियम: इस निगम के अनुसार, जो ग्रह सूर्य से जितना अधिक दूर है, उसका परिक्रमण काल उतना ही अधिक होता है, जैसे कि बुध का परिक्रमण काल 88 दिन है, और वरुण का परिक्रमण काल 164.8 वर्ष है।
ग्रहों के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य
सभी ग्रह (शुक्र और अरुण को छोड़कर) सूर्य की परिक्रमा पश्चिम से पूर्व दिशा में करते हैं, जबकि शुक्र और अरुण (यूरेनस) सूर्य की परिक्रमा पूर्व से पश्चिम दिशा में करते हैं। सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति (जुपिटर) है और सबसे छोटा ग्रह बुध (मर्क्यूरी) है।
- आंतरिक ग्रह (इंफीरियर प्लैनेट्स) या (इंनर प्लैनेट्स): ये छोटे और ठोस होते हैं, सूर्य के निकट होते हैं और भारी पदार्थों से बने होते हैं। इनमें बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह शामिल हैं।
- बाह्य ग्रह (आउटर प्लैनेट्स) या (जोवियन प्लैनेट्स): ये ग्रह आकार में बड़े और हल्के होते हैं, सूर्य से दूर स्थित हैं और हल्के पदार्थों से बने होते हैं। इनमें बृहस्पति, शनि, अरुण (यूरेनस) और वरुण (नेपच्यून) ग्रह शामिल हैं।
कुल 5 ग्रहों – बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि को नगी आंखों से देखा जा सकता है।
सूर्य से बढ़ती दूरी के अनुसार ग्रहों का क्रम: बुध (न्यूनतम), शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण (सूर्य से सबसे दूर)।
आकार के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम (डिसेंडिंग ऑर्डर): 1. बृहस्पति 2. शनि 3. अरुण 4. वरुण 5. पृथ्वी 6. शुक्र 7. मंगल 8. बुध
द्रव्यमान के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम (डिसेंडिंग ऑर्डर): 1. बृहस्पति 2. शनि 3. वरुण 4. अरुण 5. पृथ्वी 6. शुक्र 7. मंगल 8. बुध
घनत्व के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम (डिसेंडिंग ऑर्डर): 1. पृथ्वी 2. बुध 3. शुक्र 4. मंगल 5. वरुण 6. बृहस्पति 7. अरुण 8. शनि
परिक्रमण अवधि और परिक्रमण वेग के अनुसार ग्रहों का क्रम:
- परिक्रमण अवधि (आरोही क्रम): बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण
- परिक्रमण वेग (डेसेंडिंग ऑर्डर): बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण